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भारतीय नौसेना के लिए तैयार हो रहा है दुनिया का सबसे घातक (Dual Stealth Drone) ड्रोन

Dual Stealth Drone

भारतीय नौसेना के लिए तैयार हो रहा है दुनिया का सबसे घातक (Dual Stealth Drone) ड्रोन

भारत की रक्षा‑प्रौद्योगिकी में एक नया इतिहास बन रहा है। अब हमारे देश में ऐसा उन्नत ड्रोन विकसित किया जा रहा है, जो न केवल दुश्मन के रडार पर अदृश्य रहेगा बल्कि इंफ्रारेड (थर्मल) सिग्नल को भी छिपा लेगा। इसे “डुअल स्टेल्थ ड्रोन” कहते हैं—जोकि भारत पहला देश है ऐसा करने वाला

क्या है डुअल स्टेल्थ?

2.1️⃣ रडार स्टेल्थ: रडार सिग्नल को अवशोषित करके ड्रोन को रडार स्क्रीन पर दृश्यहीन बनाया जाता है।
2.2️⃣ इनफ्रारेड स्टेल्थ: थर्मल इमेजिंग सिस्टम से बचने के लिए ड्रोन की तापीय प्रोफ़ाइल को भी कम किया जाता है।

अभी तक केवल अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश अपने ड्रोन को रडार छुपा सकते थे। भारत अब एक साथ दोनों क्षमताओं वाला ड्रोन बना रहा है


🚀 सवाल — कहां से आया ये आइडिया?

इस विचार की शुरुआत 2022 में भारतीय नौसेना से मिली तकनीकी चुनौती (problem statement) के रूप में हुई। उन्हें एक ऐसा निष्पादन‑योग्य ड्रोन चाहिए था जो थर्मल सेंसरों से भी छिप सके। इसी से प्रेरित होकर Veera Dynamics की टीम ने “RAMA” नामक नैनो‑टेक कोटिंग विकसित किया


सवाल — ड्रोन में क्या खास है?

🔹 RAMA कोटिंग (“Radar Absorption and Multispectral Adaptive”)

  • यह कार्बन‑बेस्ड नैनो‑कोटिंग है, जो रडार वेव्स को 97% तक अवशोषित कर लेती है।

  • थर्मल सिग्नल को प्रति सेकंड लगभग 1.5 °C तक कम कर देती है

  • पेंट या रैप की तरह ड्रोन बॉडी पर लागू होती है।

🔹 वजन और पेलोड

  • ड्रोन का कुल वजन ~100 किलो है।

  • 50 किलो तक का पेलोड ले जाने में सक्षम—जैसे कैमरा, छोटे बम, या सेंसर

🔹 स्वायत्त संचालन (Autonomous System)

Binford Research Labs का स्वायत्त (GPS‑free और RF‑free) टेक्नोलॉजी स्टैक है, जिससे ड्रोन पूरी तरह स्वायत्तता से मिशन पूरा कर सकता है।

🔹 हमले की गहनता

  • सेकंड्स में आक्रमण कर सकता है—इंटीग्रेटेड सिस्टम की सटीकता के कारण

  • अभी तक 25–30% ड्रोन सुरक्षित रूप से टारगेट तक जाते थे; RAMA‑ड्रोन के साथ यह दर 80–85% तक बढ़ने की संभावना है


सवाल — ड्रोन कैसे काम करता है?

चरण 1: मिशन प्लानिंग

नौसैनिक या जमीनी कमांडर माइशन पैरामीटर्स सेट करते हैं—विशिष्ट टारगेट, मार्ग, ऊँचाई आदि।

चरण 2: टेक ऑफ और ईन्कंब

ड्रोन RAMA कोटिंग वाली बॉडी से उड़ान भरता है, रडार और थर्मल सेंसरों से छुपा हुआ घुसपैठ करता है।

चरण 3: स्वायत्त नेविगेशन

Binford का सिस्टम GPS‑free, RF‑free वातावरण में भी ड्रोन को सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है।

चरण 4: लक्ष्य की पहचान

एसेएसए (AESA) रडार, EO/IR कैमरा आदि सेंसर टारगेट की पहचान और लॉक करते हैं।

चरण 5: फाइनल एक्सेक्यूशन

ड्रोन सेकेंड्स में डेटा भेजेगा और आक्रमण करेगा—बम या लूज‑वेपन छोड़ेगा।

चरण 6: वापसी

वहीं से जिस दिशा से आया था, वही रास्ता वापसी या रिट्रिट के लिए जाएगा—यदि ऑटोनॉमस डिजाइन इसकी अनुमति देता है.


सवाल — सेना को क्या फायदा?

  • 🛡️ छुपा संचालन: दुश्मन के रडार और थर्मल डिटेक्शन से बचकर दागा जा सकता है।

  • 🎯 सटीकता में सुधार: अधिक ट्रैकिंग, कम फ्लाइट नुकसान, बेहतर मिशन सफलता दर।

  • ⏱️ रियल‑टाइम हमला: सेकंड में टारगेट को ट्रैक और मार सकता है।

  • 🌊 नौसैनिक उपयोग: समुद्र या कोस्टल ऑपरेशन्स में विशेष रूप से फायदेमंद।

  • 🚌 स्वदेशी राज्यों: रणनीतिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी— विदेशी ड्रोन पर निर्भरता घटेगी।

  • 💰 आर्थिक लाभ: स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा, राजस्व वृद्धि, और रक्षा निर्यात संभावनाएँ


सवाल — कौन हैं ये स्टार्टअप्स?

✅ Veera Dynamics (Hyderabad)

  • “RAMA” स्टील्थ कोटिंग के विकास में अग्रणी।

  • नैनो‑कोटिंग तकनीक में विशेषज्ञ।

✅ Binford Research Labs (Hyderabad)

  • GPS‑free और RF‑free स्वायत्त ड्रोन बनाने में माहिर।

  • हाइ‑टेक ऑटोनॉमी स्टैक का प्रमुख योगदानकर्ता।

इन दोनों स्टार्टअप्स को Ministry of Defence से समर्थन मिला है, जिससे स्वदेशी रक्षा नवाचार को गति मिली


सवाल — ड्रोन की लागत कितनी है?

अटकलें कह रही हैं कि एक डुअल स्टेल्थ ड्रोन की लागत ₹2–3 करोड़ तक हो सकती है— R&D, RAMA कोटिंग, ऑटोनॉमी सिस्टम, और पेलोड के आधार पर। हालांकि अभी तक गेम‑चेंजिंग तकनीक है, हालिया निवेश में सरकार ने ₹2000 करोड़ पहले से ही स्वदेशी ड्रोन निर्माण के लिए जारी किये हैं। इसलिए एक यथार्थवादी अनुमान यही है कि सीरीज़‑प्रोडक्शन ड्रोन की एकाइयां ₹1–2 करोड़ के अंदर होंगी।


कब मिलने लगेगा?

  • प्रोटोटाइप तैयारी: पहले से चल रही है (2025 मध्य तक)

  • नौसेना को सौंपा जाएगा: संभवतः 2025 के अंत तक

  • सेना एवं वायुसेना में रोल‑आउट: 2026–27 से शुरू हो सकता है।


व्यापक परिप्रेक्ष्य और तुलनात्मक स्थिति

🇺🇸 USA, China, Russia

क्योंकि इन्होंने पहले से ही रडार‑स्टील्थ ड्रोन बनाए हुए हैं (जैसे XQ‑58, etc.), लेकिन IR‑स्टील्थ क्षमता नहीं मिलती एक ही ड्रोन में।

🇮🇳 भारत की रणनीति

DRDO, HAL, Veera Dynamics, Binford Labs और अन्य स्टार्टअप्स जैसे Solar Aerospace (Rudrastra), Economic Explosives (Nagastra-1), HAL CATS Warrior आदि मिलकर स्टील्थ + ऑटोनॉमी का भविष्य बना रहे हैं


निष्कर्ष

भारत का यह डुअल स्टेल्थ ड्रोन प्रोजेक्ट एक मील का पत्थर साबित होगा—रडार और थर्मल डिटेक्शन दोनों से बचने वाला, स्वदेशी कोटिंग और ऑटोनॉमी स्टैक, और ₹2 करोड़ तक की किफ़ायती लागत। न केवल हमारी सेनाएं, बल्कि दुनियाभर के रक्षा क्षेत्र में भारत का सम्मान बढ़ेगा।
यह भारत की “सेल्फ‑रिलायंट डिफेंस” की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है—जो हमें 2030 तक ड्रोन हब बनाने की ओर ले जाएगा

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